अभितक तो सधी खुब नाथ मेरी

           (तर्ज : एक रात दो दो चांद खिले... )
अभितक तो सधी खुब नाथ मेरी, आगेकि राह तो तुम जानो ।
मुझे कौन फिकर इस बातोंसे, जो होगा वह तुम पहिचानो ।।टेक।।
हमने तो तुम्हींपर सौंप दिया, जीवनका भार उठावनको ।
चाहे मारो कि तारो मेरे भगवन्‌,यह अर्जी मानो,नहिं मानो ।।१।।
कोई कहते तू तो निकम्मा है, खाता और घुमता जंगलमें ।
क्या आँख लगाकर करना है, हमको तो दिखे एक दीवानो ।।२।।
ईमानसे कहता हूँ तुमको,हमने न जरा भी पाप किया ।
जो कुछभि किया तेरा नाम लिया,कहे तुकड्या प्रभु तुमही जानो ।।३।।