दिल दो - दो बातपे ध्यान करे

         (तर्ज : एक रात दो दो चांद खिले.. )
दिल दो- दो बातपे ध्यान करे, एक स्वारथ एक परमारथ है ।
पर स्थीर नहिं रहता पल भी,कभी ये पथ है कभि ओ पथ है ।।टेक।।
समझाहि नहिं सच है किसमें, आखिर का नतीजा है जिसमें ।
कोई सत्‌गुरुराज बतादे सही, फिर निश्चय हो अपने मत है ।।१॥
जब इंद्रिय जोर करे बलसे, तब ग्यानकि बात जरा न चले ।
बल ग्यान में हो तब ही तो सधे,यह जीवन होवत सम रथ है ।।२।।
इसकेहि लिये तप साधन है, जिससे रहता मन उन्मन है । 
अलमस्त निशा बैराग की, हो प्रभु भक्ति उसे फिर अवगत है ।।३॥
गुरुदेव दया करदे गरचे, फिर भाग खुले, सब काल टले ।
तुकड्या कहे सार्थक हो अपना,यह चाहे वो ही सबसे नत है ।।४॥