छोड तुम्हे कहाँ जाऊँ

       (तर्ज: सासरला मुलगी निघाली....)..
छोड तुम्हे कहाँ जाऊँ, कहाँ सुख पाऊँ,
कौन करेगा पार ये नैय्या ? ।।टेक।।
भवसागर की कठिन ये मंजिल,जहाँपर चलती मनकी किलबिल ।
कामक्रोध की उसमें चिलबिल, सम्हले न जाती भैय्या !
तुम्ही सुधरैय्या, कौन करेगा पार ये नैय्या ? ।।१।।
एक-से-एक महासंकट है,जन्म-मरनकी बडी झंझट है 
निकल यहाँ से पाऊँ, भव तरजाऊँ, ऐसा कौन रवैया ।
देत बतैय्या, कौन करेगा   पार   ये   नैय्या ? ।।२।।
इस कारण आया हूँ चरण में, दीन बालकको ले लो शरणमें ।
तुकड्यादास खुशी फिर मनमें, यह विश्वास बसैय्या ।
तुम्हि पितु-मैया, कौन करेगा पार ये  नैय्या ? ॥३।।