किसकी भक्ति करुँ मैं

     (तर्ज : सासरला मुलगी निघाली.... )
किसकी भक्ति करूँ मैं, ध्यान धर मैं,
शान्ति मिलेगी, दुख बिसरूँ मै ।।टेक ॥
प्रभु-मंदिर में है कि जिवोमें, किसकी पूजा कर रिझाऊँ मैं ।
एक बाहर है, एक मन्दिर में, कैसे समझ सुधरुँ मैं, भव उध्दरूँ मैं,
शान्ति मिलेगी, दुख बिसरूँ मैं 0।।१॥
कोई कहते है प्रभू हर पल है, जो जपता वहि पाता बल है ।
करनी बिनु सारही विफल है,क्यों नहिं सच समझुं मैं,यौंहि तरूँ मैं ।
शान्ति मिलेगी, दुख बिसरूँ मैं 0।।२।।
बिन सत्‌गुरु के पार न पाये, सत्‌गुरु  देवहि राह बताये ।
संध्या - भक्ति वही उपजाये, निश्चय यौंहि करूँ मैं, ढूंढू गुरु मैं ।
शान्ति मिलेगी, दुख बिसरूँ में 0।।३।।
निर्णय मन नहिं करता अपना, या फिर देखूं अन्दर अपना ।
तुकड्यादास सहे नहिं तपना, सीधी राह धरूँ मैं, सोहंम हूँ मैं ।
शान्ति मिलेगी, दुख बिसरूँ मैं 0।।४।।