सिधा - सिधा मारग क्यो ना चले ?
(तर्ज: मिठी मिठी बातोंसे बचना जरा... )
सिधा-सिधा मारग क्यों न चलो ?
अपने प्रभूसे क्यों न मिलो ? ।।टेक।।
आढी-तेढी दुनिया गयी । मौतकि मुंहमें खाक भयी ।
नामनिशाना, मिट गया बाना, इस आदतसे क्यों न ढलो ? ॥१॥
बडे-बड़े महाराज गये । धनिकोंके सिरताज गये ।
बह गया पानी, फसि जिंदगानी,अभि तो बात मेरी सुनलो !॥२॥
यह नर-तन एक देन मिली । आज मिली फिर काल चली ।
सुनो मेरे भाई ! करलो कमाई, अपने आपकीही सुध लो ।।३।।
सबसे मिलकर दिन गुजरो । किसिका बुरा कबहूँ न करो ।
मुकड्यादासा,यहि अभिलासा, आजहि निश्चय कर निकलो ॥४॥