हर कदम - कदम में रोके

              (तर्ज : मुझे छोड गये बालम...)
हर कदम-कदम में रोके, वह मन को ग्यान   बताकर ।
आडे नहिं चलने देता, है कौन ये साथि उजागर ।।टेक॥
इंद्रियाँ इसे कहता हूँ, वह   मुर्दा    ही    तो   देखूं ।
उछलाकर छल -बल करता, वह मन भी तो मैं परखूं ।।
फिर कौन कहा करता है, ये मत कर या वो मत कर ।। १।।
वह ग्यान रुप तो मैं हूँ , जो सब पर नजर चलाता ।
हर घड़ी -घडी सिखलाता, उसकी ही चाल चलाता ।।
कहे तुकड्या उसको देखो,तो खुशी होगयी जी-भर ।।२॥