जागो! अपने धर्म को जगाओ ! ये चरित्र जायेगा! फिर देश रोवेगा! ।। जागो!

(तर्ज: शिशाई ! दिल दतना ना उछालो... )

जागो! अपने धर्म को जगाओ !
ये चरित्र जायेगा! फिर देश रोवेगा! ।। जागो! ।।टेक ॥
धरम के वासते कै प्राण गमाया हामने ।
धरम की राह में ही बाँह जमाया हामने ।।
धरम के नाम बालकों को दबाया हामने ।
धरम की बानी पर चीढ बढाया हमने ।।
धरम के नाम देश-भेष बनाया हमने ।
जागो! अपने धर्म को जगाओ ! ! .. ।। १ ।।
धरम के वास्ते ही रावण को मारा था।
धरम के वास्ते कै दैत्य को संहारा था ।।
धरम ना जाये विभिषणने ये पुकारा था।
धर्म के खातिर सतियोंने प्राण छोड़ा था । ।
धर्म का ही तो इस देश को सहारा था।
जागो! अपने धर्म को जगाओ ! ! .. ।। २ ।।
धर्म कैसे जगे, गर ये नीत खो जाये?
धर्म कैसे चले, गर ये साधू सो जाये?
धर्म कैसे बचे, भ्रष्टता ही हो जाये?
धर्म कैसे रहे, सत्ता ही डुबी जाये?
धर्म क्या रहे, गर धर्मवान्‌ मर जाये?
जागो ! अपने धर्म को जगाओ! ! .. ।। ३ ।।
ये धर्म ही ईमान है, न बैमानी आने दो ।
ये धर्म ही तो न्याय है,न अन्यायी जीने दो । ।
ये धर्म सदाचार है,घूंसवालों को न खाने दो ।
धर्म ही आजादी है, बरबादी मत होने दो।।
तुकड्या कहे,तैयार हो घर-घर में इसे गाने दो ।
जागो ! अपने धर्म को. जगाओ! ! .. ॥ ४॥