जातेही है भारतसे, ये तन छूट मेरे
(तर्ज : अगर है शौक मिलनेका... )
जातेही है भारतसे, ये तन छूट मेरे ।।टेक।।
जब हम दुनियामें आये है ।
उसिदिन जाना कहवाये है ।
जबतक समझ न हम पाये है ।
आखिर जी पछताते हैं, भारतसे ये तन छूट मेरे ।।१।।
हम कहते, हम नहि पते हैं ।
हम गाते पर नहि पाते है ।
ये पल पल बीते जाते हैं ।
चौरासी भरमाते है, भारतसे ये तन छूट मेरे ।।२।।
जब नहि हमने प्रभु-गुण गाया ।
सत्-संगति कर सिर न झुकाया ।
तो वह समझ पड़ी सब माया ।
आखिर जम-घर जाते हैं, भारतसे ये तन छूट मेरे ।।३।।
हे भगवन् ! करूणा कर मोहे ।
में गुण गात रहूँ नित तोहे ।
जगवा दे तकदिर जो सोये ।
तुकड्या तब सुख पाते हैं, भारतसे ये तन छूट मेरे ।।४।।