सबसे अविचल ब्रह्म अनादी

(तर्ज : काहेको परघट दौरत भाई ! ... )
सबसे अविचल ब्रह्म अनादी ।।टेक।।
थी न जमीं, असमाँ अरु पानी, ना थी वायु-उपाधी ।।१।।
ना था शंकर, ब्रह्मा, विष्णु, ना थी माया-व्याधी ।।२।।
ना थे जीव, शीव अरु बेदहि, ना था मैं, तू आदि ।।३।।
तुकड्यादास कहे रे ग्यानी ! ऐसो बाँध समाधी ।।४।।