चढी न जात मेरी सुरति गगनमें

(राग : गौड़ सारंग: ताल तिनताल... )

चढ़ि न जात मोरि सुरति गगनमें ।
भटकत है  पल -छिन   विषयनमें ।
लटक    रहेगी   फेर   अगंन    में ।।टेक।।
ज्योति ये जाय बुझे नर-तनकी ।
तब   पायेगी   भोग   जनमकी ।
अटक  पड़ेगी   डोर   जीवनमें ।।३॥
सद्गुरु - देव दया कर   मोहे ।
ना जाऊ   मैं   पाप   डुबोये ।
चटक लगे   मोहे   चरणन   में ।।२॥
प्रभू   किरपा   से   सूरत   देखूँ ।
आतम-ग्यान   अपनमें  परखूँ ।
तुकड्या कहे,सुख पाऊ मगन में।।३॥