किसको न भाता हूँ, मै बुरा मनका

(तर्ज : दिल का खिलौना... )

किसको न भाता हूँ , मै बुरा मनका । 
जबतो आखरी में मेरा घर ही  है  बनका ।।टेक।।
साथी संगाती मेरे, जराना खुशीमें रहते । 
चाहते है हरदम मुझसे, शान शौकिनी में बहते।।
अबतो नहीं भाता मुझको, करके नापसंद करते।
चाहे कुछभी  होके  जावे, तनका  औ  मनका ।।१॥
एकही लगन है मुझको, प्रभू  से  मिलेंगे  कैसे ।
खतम हुई दुनियादारी, अब नहीं भावे मुझसे ।।
कहाँ तक ये पाप सरपे, भरा रहे पागलपन से ।
कहे दास तुकड्या दरपे, रहूँ प्रभुके वतन का ।।२॥