काहेको पहनी है माला रे भाई

(तर्ज : काहे को तीर्थ जाता रे भाई... )
काहेको पहनी है माला रे भाई, काहेको पहनी है माला ।।टेक।।
साधू-संतोका कहना न माने,कहता उन्हीका हूँ चेला ।
घर के-नगर के लोग न देखे, करता है मौज अकेला, रे भाई-
काहेको पहनी है माला 0।।१।।
दिनभर झूठा बेपार करता, ईमान सब खो डाला ।
चारित्र्य नीति सब गमा बैठा,लगवाया मुंह को काला, रे भाई -
काहेको पहनी है माला 0।।२।।
तीरथ जाता, पैसा उडाता, कहता है मैं दानवाला ।
गाँवोके लोगोंको छोडा न खाली, किसान सब लुट डाला, रे भाई-
काहेको पहनी है माला 0।।३॥
या तो यह माला तोड गले की,नही तो हो ईमानवाला ।
तुकड्या कहे तेरी नियतने ही, धर्म को धोखे में डाला, रे भाई-
काहेको पहनी है माला 0।।४।।