अब तो आँखे खोल अब तो आँखे खोल | बन्दे!

तर्ज : मनकी आँखे खोल...) 

अब तो आँखे खोल अब तो आँखे खोल | बन्दे! ।।टेक।।
नीति गयी दुनियासे सारी। 
प्रीत हुई मतलब की प्यारी।।
जिधर उधर छलबल,कामी  जन।
मिले न निर्मल बोल । बन्दे ! ।। १ ॥
पाप पुण्य का कहाँ गुजारा?
धर्म घुपे गलि  मारा-मारा। 
ईमानकी तो बात कहाँ है?
बजे झूठके  ढोल ।  बन्दे !   ।। २॥
बिगड़ गयी शासन की रीति।
साम- दाम- दण्डन की नीति।।
अपना -परका देख-देखकर,
झुके न्याय का तोल। बन्दे ! ॥३।।
कोई न तेरा यहाँ सहारा।
जिसका वहि है तारनहारा ॥
कहाँ बन्धुता, सेवा, समता ?
खुदी बढा निजमोल। बन्दे ! ।।४।।
जगमें रहा  प्रलय होनेका ।
या तो  प्रभु के अवतरनेका।।
तुकड्यादास कहे, मै बोला,
अनुभव लेकर बोल । बन्दे ! ॥५॥