कहि मानो भारतबासिंदो

(तर्ज: कायाका पिंजरा डोले....)
कहि मानो भारतबासिंदो । अब आई बिपत बड़ि भारी ।।टेक।।
बदलेगा भौंर - जमाना, सब पंथ पड़ेंगे नाना ।
होगा सबको अभिमाना जी, बिरलेही छूटेंगे खारी ।।१।।
पापोंके भरेंगे हंडे, आपसमें चलेंगे डंड़े ।
तब शहर बनेंगे ठंडे जी, दुख पाय पिता- महतारी ।।२।।
आपसमें बीर लडेंगे, कई गाँवमें खून बहेंगे ।
नहि किसका ग्यान सहेंगे जी, दुख पायेंगे नरनारी ।।३।।
सब गाँव पड़ेगा डाका, गुंडोसे पडेगा धाका ।
कोइ सेवा करेगा बाँका जी, हो सतजुगका अवतारी ।।४।।
गर इसको दूर भगाना, तो सभी एक हो जाना ।
कहे तुकड्या सुनलो गाना जी, मत देर करो अब थोरी ।।५।।