दिन चार घडीका जीना

(तर्ज: कायाका पिंजरा डोले... )
दिन चार घडीका जीना, दुनिया है मुसाफिरखाना ।।टेक।।
कइ लाख करोडों आये, कइ कोटों खतम कराये ।
बस यही चला है गाना । दुनिया है०।।१।।
राजा महाराजा आये, यहाँ कोइ रहन नहिं पाये।
भइ बेर छुटा परवाना । दुनिया है०।।२।।
कोइ सुखिया मौज उडावे, कोइ दुखिया दुख भरमावे ।
यह  कर्मभूमिका बाना । दुनिया है०।।३।।
ना भूलो इस सपनेमें, करलो कुछ बल अपनेमें।
नहि तो नहि आगे ठिकाना । दुनिया है०।।४।।
कहे तुकड्या भूल पछानो, अपने निजरूपको जानो ।
तब   टूटे   आना  - जाना । दुनिया हैं०।।५।।