सुजन मन ! भाव भगति मत छोड

(तर्ज : सुदामजी को देखत श्याम...)
सुजन मन ! भाव भगति मत छोड ।।टेक।।
तबहि तो मानुज जन्म सफल है, सतसंग में मति जोड ।।१।।
दुर्गुणमति को दूर  हटाकर,   षडरिपु  -  मारग    तोड़ ।।२।।
चलत हलत मुख रामभजन से, बात किया कर   गोड ।।३।।
खो मत मुफ्त मिली नरकाया, परउपकार   को   दौड ।।४।।
तुकड्यादास कहे भज हरिको, जमके    मारग   मौड ।।५।।