हमारे मन भाय गयो ब्रजराज
(तर्ज : सुदामजी को देखत श्याम...)
हमारे मन भाय गयो ब्रजराज ।।टेक।।
कुंजनबनकी गर्द लता में, मोरमुकुट सिर ताज ।।१।।
किलबिल किलबिल कोयल बोले, आइ मधुर आवाज ।।२।।
जमुनातट गौएँ रंग लायीं, गोपि चढे सब साज ।।३।।
तुकड्यादास दरस का भूखा, भूल गयीं तन लाज ।।४।।