ऐ भारतके प्यारे भगवन् !
(तर्ज : यह प्रेम सदा भरपूर रहे... )
ऐ भारतके प्यारे भगवन् ! सुविचारसे मुझको चलने दे ।
मन-मंदिरके मेरे सारे, स्फूर्तीके रँग बहलने दे ।।टेक।।
गर भावभक्ति मेरी सच है, हो बंधन क्यों मुझपर किसका ?।
मानवके धर्म सहलने दे, उसहीको कर ये मलने दे ।।१।।
जब हम दुनियामें पेश हुए, तेरा वह ग्यान समझनेको ।
तब क्यों हो खौंफ किसीकाभी ? यह डरका भेद बिछुडने दे ।।२।।
जब है हम अंश तुम्हारेही, तब तुम्हरा घट नहि बंधनका ।
सुखस्वर्गकी स्फूर्तीको मेरी, आकाशके रंगमें खुलने दे ।।३।।
हम निर्भय हों तनसे मनसे, सब कामसे या तो धामसे भी ।
इस अखिल निरामय सृष्टीमें, मुझ-प्रिय आत्माको झुलने दे ।।४।।
गर बंधन हो तो पापोंका, जो सज्जनपरभी दाब करे ।
उसको ना दे क्षणभी जीवन, उस खलको खलसे खलने दे ।।५।।
हम तो चाहते हैं प्रेम तेरा और आजादीका नेम तेरा ।
कहे तुकड्या सबको सौख्य मिले, इस भेदके फूलों फुलने दे ।।६।।