कइ रोजसे यार ! अदालतमें
(तर्ज : यह प्रेम सदा भरपूर रहे...)
कइ रोजसे यार ! अदालतमें, अब होता झगड़ा पेश मेरा ।
जब पूरा झ सुनवा हो जावे, तब सुन लेना संदेश मेरा ।।टेक।।
हम तो हैं भारत बासिंदे, जिसमें के राम औ कृष्ण हुए ।
स्वातंत्र्य हमारा जीवन था, फिर क्यों नहि हो उद्देश मेरा ?।।१।।
हम क्योंकर जियें गुलामीसे ? यदि मानवहक्क बताते हैं ! ।
ईश्वर तो प्यारा है सबका, छिनवा दे क्योंकर भेष मेरा ?।।२।।
हों धर्म जगतमें किनके भी, उनको उन्नतिकी राह मिले ।
नीतिसे जिये, नीतिमें मरे, नीतिमें रहे वह नरेश मेरा ।।३।।
जो कुछ कर्तव्य करे नर वह, उसको चारों पथ खूले हों ।
गर बंधन हो तो पापोंपर, उस बंधनसे नहि द्वेष मेरा ।।४।।
पर हम कहते वहि काम करो, और बुध्दी यार ! गहान करो ।
कहे तुकड्या यह नहिं हक्क मेरा, रहे आजादीमें देश मेरा ।।५।।