जिस गुरु ने मोहे ज्ञान दिया
(तर्ज : घर आया मेरा परदेशी..... )
जिस गुरुने मोहे ज्ञान दिया, उसकी सदा बलिहारी है ।
आतम का परकाश किया, अलख-लगायी तारी है ।।टेक॥
ये दिल मन्दर सुन्दर था, श्वास का बीना अंदर था।
सुनि सोsहं ललकारी है,उसकी सदा बलिहारी है।।१॥ चाँद-सुरज बिन उजियारा, बीच गंगाकी है धारा ।
अमृत-झरण पियारी हैं, उसकी सदा बलिहारी है ।।२॥
अनहद की झनकारी में, शोडष दल की क्यारी में ।
मन-मकरंद फवारी है, उसकी सदा बलिहारी है ।।३॥
बिन तारों की बीन बाजे, बिना रंगके रंग सजे ।
सबकी झलक नियारी है,उसकी सदा बलिहारीहै।।४।।
त्रिकट-शिखर का मंच बडा, भ्रमर-गुफों का बेल चढा।
बिना चाँद उजियारी है,उसकी सदा बलिहारी है ।।५॥
बाँह पकडकर लाया था, निज अनुभव बतलाया था ।
तुकड्या कहे मैं-तू बिसारी है,उसकी सदा बलिहारी है ।।६॥