दिलमेंहि नही जब शांति मिली

(तर्ज : यह प्रेम सदा भरपूर रहे...)
दिलमेंहि नही जब शांति मिली, कुटियाको बनाना नाहक है ।
नहि आतमग्यानका रंग लगा, यह जोग रमाना नाहक है ।।टेक।।
सुविचारकि माला तनपे नही, यह बभूत रमाना नाहक है ।
मन मैला है विषयोंमें फिरे, तीरथमें नहाना नाहक है ।।१।।
जब जगमें जनार्दन ना देखा, मंदीरको पुजाना नाहक है ।
जब दिल अपना काबूमें नही, बस ध्यान चढाना नाहक है ।।२।।
जब मनके उपर नहि बोध हुआ, पोथीको पढाना नाहक है ।
जब अंदरसे रैँग लागा नही, बाहरसे रँगाना नाहक है ।।३।।
जब सत्‌ बातोंपे अमलहि नही, परमार्थ बताना नाहक है ।
अब तुकड्यादास उदास भया, बिन प्रेमके गाना नाहक है ।।४।।