जो फूल भरे रोशनके थे

(तर्ज : यह प्रेम सदा भरपूर रहे... )
जो फूल भरे रोशनके थे, सब तोड लिये बगवैयाने ।
पड़झड़के साथी हैं अब हम, आगेके जमाने क्या जाने ?।।टेक।।
था खुशबुदार वह फूल खिला महाराज शिवाजी छत्रपती ।
मंजूर हुई सेवा उनकी, बस उठा लिये बगवैयाने ।।१।।
हरियाली थी भारतमें वह, महाराष्ट्र फुँवारी संतनकी ।
जीते-जी खो बैठे तनको, बस लुटा लिये बगवैयाने ।।२।।
गुरुनानक गुरुगोविंद हुए, जिनकी दुनियामें थी खुशबू ।
बदकिस्मतसे हमरे वे भी, कटवाय लिये बगवैयाने ।।३।।
प्यारे कबीर और संत तुका ईश्वरभक्तीमें तुलसी थे ।
बस रँगा दिया भारत एकदिन, सकुचाय लिये बगवैयाने ।।४।।
कई देशभक्त उजियारे थे, दोनों दुनियाके प्यारे थे ।
थे रामदास गुरु ज्ञानदेव छुपवाय लिये बगवैयाने ।।५।।
इस बागमे जो कुछ चंदन थे, बस घीस-घासकर फना हए ।
अब कड़वे नींब रहे हमको, पिघलाय दिये बगवैयाने ।।६।।
जो कुछ उमले हैं फूल नये, उनपर कीडोंकी जोर बडी ।
क्या होगा कह नहि सकते हैं, किरपा करना बगवैयाने ।।७।।
तुकड्याकी आसा जीती है, उन फूलकी चाह सुगंधीको ।
बस फेर नया बगिचा हो यह, भिजवाना उस बगबैयाने ।।८।।