छोड कहाँ पर जाउँ बिहारी !
(तर्ज: लोटूं नको मज दूर कन्हैया !....)
छोड कहाँ पर जाउँ बिहारी ! कौन खबर लेगा गिरिधारी ! ।।टेक।।
तुमबीन कौन सहायक दूजो?आस धरी तुम्हरी बनवारी ।।१।।
यह संसार सपनकी माया, होत अती मन खिन्न मुरारी ।।२।।
मद-मत्सरकी धार कठन है, बहते हैं उसमें मनहारी ! ।।३।।
तुकड्यादास कहे सुध लीजो, तुम्हरे चरणकी बलिहारी ।।४।।