सुना ही सुना है, प्रभू तेरी कीर्ती
(तर्ज: मूर्त रुप जेथे ध्यान श्रीपतीचे...)
सुना ही सुना है, प्रभू तेरी कीर्ती ।
मगर नहीं देखी, परखी वो मूर्ति ।।टेक।।
जहाँ -जहाँ जाते वियोग ही होता ।
फेर जीव खाता बार - बार गोता ।
घडी पल जाता नहीं होती पूर्ति -
रोती है नैना,दिलमें नही शान्ति !।। सुना ही 0।।1।।
चारों धाम तीर्थ देखा, जप तप व्रत को देखा ।
धर्म-पंथ सारे देखा, वादविवादों को देखा ।
कहीं नहीं पायी मैने, ज्योति - रुप आर्ती !
कहे दास तुकड्या मोहे, कौन देगा स्फूर्ति ! ।।सुना ही 0।।2।।