हिंदुओ ! मंदीर ये हैं, पूज्य अपने धर्ममें

(तर्ज : क्यों नहि देते हो दर्शन.. )
हिंदुओ ! मंदीर ये हैं, पूज्य अपने धर्ममें ।।टेक।।
जब गयी वह शान उनकी, हम तभी पापी बने ।
साफ नहि मंदिर तो, बुध्दी   पड़ी   है   भर्ममें ।।१।।
इस सभी संसारमें, वहही है शांतीकी जगह ।
जब उसे भूले हैं हम, तब क्या रहा है कर्ममें ?।।२।।
घर तभी कुछ ठीक है, पर मंदिरोंकी यह दशा ।
झाडु ना लगता कभी, आते नहीं हम   शर्ममें ।।३।।
अन्य धर्मीयोंके देखो, मसजिदों और चर्चको ।
दिल सदा लगता वहाँ, और मिल चुके कुछ वर्ममें ।।४।।
कहत तुकड्या याद करके, मंदिरोकी खब्र लो ।
नीच-ऊँचता छोड दो, प्रार्थो प्रभू   इस   मर्ममें ।।५।।