जाग ऊठो बालबीरो ! अब तुम्हारी बारि है

(तर्ज : क्यों नहि देते हो दर्शन. . )
जाग ऊठो बालबीरो ! अब तुम्हारी बारि है ।
भारतीपे वारि जाओ, चल करो तैयारी है ।।टेक।।
आजतकके निभ गयी, अपने पिताकी जिंदगी ।
अब नही सुख पायगा, प्यारे हो ! अपनी हारि है ।।१।।
धन गया सब शौकिनीमें, तन दिया व्यसनोंमें खो ।
राजभी तो खो गया, आयी गुलामी सारि है ।।२।।
ना रही बुध्दीमता, अभिमान भी नहि देशका ।
शेरकी वृत्ती गयी, डरपोकताही जारि हैे ।।३।।
धर्मका लवलेश ना, ना चाल है सत्‌कर्मकी ।
क्या करेगा देवभी ? बस भेजता वह बिमारी है ।।४।।
खैर जो कुछ खो गयी, अब तो है मरना तुम-हमें ।
बात यह जँचती है गर, तो ना रहो अनारि हैं ।।५।।
बल कमाओ, ग्यान सीखो, संगठन करके रहो ।
कहत तुकड्या देश-खातिर, सेवा करलो प्यारि है ।।६।।