क्योंकर रूठ गये गिरिधारी ?

(तर्ज : जगमें हीरा मिलत कठीना...)
क्योंकर रूठ गये गिरिधारी ? सुनिए अर्ज हमारी ।।टेक।।
तुम्हरा नाम कहे सब भारत, हरि हमरे हितकारी ।
क्योंकर ब्रीदको भूल रहे हो ? आओ करिए न देरी ।।३।।
गीता -ग्यान सुनाकर हमको, बनवा दिये पुजारी ।
अबके भारत याद भुला वह, रणकी शंख तुम्हारी ।।२।।
गौएँ तरस रही गोपिनकी, लाज गयी सब हारी ।
गोपालनको दुःख बडो है, करते   याद     तुम्हारी ।।३।।
तुकड्यादास कहे सब बनचर, जलचर, नभचर सारी ।
भूचर सबही याद तुम्हारी करते,   आओ   मुरारी ! ।।४।।