जाग जाग जाग भाई ! राह चल सुधारके
(तर्ज : गौतम नार जबसे सिलाकर डारी... )
जाग जाग जाग भाई ! राह चल सुधारके ।।टेक ।।
भयी अधि रात दिन हुआ खतम, इस आयुका कम माप हुआ ।
इसी तरह गर गयी उमर तो, कालका तडाका बैठे,
सोचले बिचारके ।।१।।
आजतलक जो पाप किया, सब तज दे झूठ बिचारनको ।
शरण चला जा गुरुनाथसे, टूट पडे सारे बंध,
झूठ मायाजारके ।।२।।
जाग गया धृवबाल, अमरपद पाय लिया अपनी धुनसे ।
तुकड्यादास कहे मत भूले, दिन नयाहि निकला अब तो,
तोड बंध जारके ।।३।।