है कोइ ऐसा प्यारा बंदा
(छंद)
है कोइ ऐसा प्यारा बंदा, जो आतममें चटका है ।
अपने आपको जान लिया, जिम बूँद गंगसे खटका है ।।टेक।।
गजबकि धुनकी लगी है जिसको, पंच परात्पर लटका है ।
जिसके खातिर गया खोजने, उसीमें जाके अटका हैं ।।
नहि बांधा किसही बंधनसे, सब अटकोंसे सटका हैं ।
साक्षी रूपको समझके अपने, वहीं मुकामा पटका है ।।
पाप-पूनका नहीं ठिकाना, यह तो भेद इस घटका है ।
दूर हुआ जो भेद-भावसे, वह घर जिसने पटका है ।।
क्या राजा और कहाँ रंक है ? दूर किया यह मटका है ।
अपने आपको जान लिया, जिम बूँद गंगसे खटका हैं ।।१।।
लहर-बहरसे टहलके अपनी, सहलको देता झटका है ।
जहाँ ले जावे खुदीकि किस्मत, ख़ुशीसे वहाँपे भटका है ।।
जो कुछ सुखदुख मिले सहन कर, सुखशांतीमें डटका है ।
अमर प्रेमका झरा चाखकर, पी-पीकर मन गटका है ।।
मैं तू के सब कटाके झगडे, निरालंब को पटका है ।
रहा है दम बस उसीके अंदर, खुद मस्तीमें भटका है ।।
कहता तुकड्यादास उसी साधूमें यह मन लटका है ।
अपने आपको जान लिया, जिम बूँद गंगसे खटका है ।।२।।