काहेको दुःख उठाता रे भाई !
काहेको दू:ख उठाता रे,भाई! काहेकों दुःख उठाता ? टेक।।
अपनेहु सुख को हैं जोरु-लडके ! भाई-बहन और माता !
पर आज ऐसा आया समय है,सिर पर ये बोझा न भाँता रे भाई ! !
काहेको दु:ख उठाता ? 0।।1॥
दिन भर करता मोल-मजूरी, तोभी पूरा नहीं होता !
फटी चिथडियाँ पहने ही रहता, तोभी पुरा नहीं खाता रे भाई ! !
काहेको दु:ख उठाता ? 0।।2॥
समझा ! क्या कारण है इसका, सुनले मेरी दो बाता ।
विषयों के मारे अपने-सहित तू, शक्ति-बुध्दि खो देता रे भाई ! !
काहेको दु:ख उठाता ? 0 ।।3।।
बच्चोंपे बच्चे हरसाल होते, गल गई बच्चों की माता।
खाने -पीनेका ठौर नहीं है, रोता है भाग्य-विधाता रे भाई ! !
काहेको दु:ख उठाता ? 0।।4।।
कुछ न कमावे खावे कहाँसे ? कोई सहारा न देता ।
अंधा न बन, रोक सन्तान करना, तेरा घर सुखी होता रे भाई ! !
काहेको दु:ख उठाता ? 0।।5।।
थोडे ही पुत्रोंमे लिखना पढावे,आरोग्यका होजा दाता ।
सद्गुणी कर तेरी सन्तान सारी,तबही तो उध्दार होता रे भाई ! !
काहेको दु:ख उठाता 0।।6।।
तुकड्या कहे तेरी इज्जत हो ऐसी ! रख शान जगमें दिखाता ।
सौंदर्य हो तेरी पुरी जिन्दगीमें, तब देश गौरव को पाता रे भाई ! !
को दु:ख उठाता ? 0।।7।।