सुख की जिन्दगी चाहता है
(तर्ज : चल चल अपुल्या गावाला. . .)
सुख की जिन्दगी चाहता है,दुख में फिर क्यों रहता हैं ?
दुख बोनेपर, सूख कहाँसे ? ? ।।टेक।।
थोड़ी जिन्दगी,व्याप भि थोडा,लड़के -बच्चे हों थोडे ।
विषयों के फैँदे में आकर, क्यों घर अपना मोडे ?
सोच - समझकर जो रहता है,उसके घर आनन्द बसे ।
दुख बोनेपर, सूख कहाँसे ? ।।1॥
सुन्दर घर है, सुन्दर खेती, सुन्दर हैं रहनेवाले ।
आब-हवा. सारी सुन्दर है, सुन्दर नाज उगाले ।
सुन्दर शिक्षण,सुन्दर भक्षण,सुन्दर बालक हो सबसे ।
दुख बोनेपर, सूख कहाँसे ? ।।2॥
हदके बाहर जो कोइ चलता, वहि दुख में भरमाता है ।
मनमाने सन्तान बनाये, आखर किया अखरता है ।
इसीलिये कहता हूँ प्यारे ! दिन काटो ये संयमसे !
दुख बोनेपर, सूख कहाँसे ? ।।3।।
बिना हिसाब न किसका चलता, सुन्दर है बेपार यहाँ।
आमदसे खर्चेंगा ज्यादा, तो होगा घाटाहि वहाँ ।
जीना मुश्किल अपनी स्त्री का, भोगों में ही रहे फँसे!
दुख बोनेपर, सूख कहाँसे ? ।।4।।
सुनलो मित्रो! बात हमारी, थोडे ही सन्तान करो !
कष्ट करो और मस्त रहो,भारतपर कुछ एहसान करो।
तुकड्यादास कहे तब जीओ, निर्भय हों सारे डरसे!
दुख बोनेपर, सूख कहाँसे ?।।5।।