आगे घर घर सुख छायेगा
(तर्ज : छंद...)
आगे घर घर सुख छायेगा, अमीर हो या रंक रहे ।
किमत उनको वही मिलेगी, हो मोती या शंख रहे ।।
अपना अपना काम करे, और साझादीसे पेट भरे ।
लेना देना फर्ज न होगा, समतासे गुजरान करे ।।1॥
जात पात सब हट जायेगी, मिट जायगी धीरे धीरे ।
जिसका जो कोई कर्म रहेगा, नाम उसीका वही धरे ।।
अमर शहीदोंके स्थलपर अब,कीर्ति ध्वज उड रही भली।
कई अड़ंगे काट काट कर, आजादीके काम चली ।।2॥
सुनो देशके बीर जवानों ! हुई सो बाते ठीक हुई ।
अब आगे मुश्किल है जीवन, थोडेमेंही बात रही ।।
जिधर उधर गुडोंका आया, उमड उमडकर मेला है।
चलो उठो निकलो घर बाहर, तोडो यार झमेला है ।।3।।
रक्षण करो देशका अपने, जो अब तक के पाला है ।
नहिं तो अपनी घमंड के गर्मीमें, होगा मुँह काला है ।।
तुकड्यादास कहे जो दिलमें,आयी सो कह दिया खुली ।
कई अड़ंगे काट काट कर, आजादी के काम चली ।।4।।