जय-जय सदगूरु दीनदयाल !
(तर्ज: घर आये लक्षमन राम...)
जय-जय सद्गुरु दीनदयाल ! दरससे हरष भयो ।।टेक।।
लाखो जन्म करे पुन जाके, तब पाये महाराज ।
धन्य भये हम आज मिले तुम, सिध्द भये सब काज ।।१।।
टूट गयो अग्यान - अंधेरा, छायो बोध - प्रकाश ।
रुप तुम्हार नजरमो भायो, पाप भये सब नाश ।।२।।
किसबिध महिमा गाउँ तुम्हारी ? बाणी न पहुँचे जाय ।
तन-मन-धनसे करूँ आरती, हिरदय-बीच बसाय ।।३।।
चौदा भुवन प्रकाश तुम्हारा, ध्वजा खडी चहूँ धाम ।
स्वर्ग - मृत्यु - पाताल तिहूँसे, तुमही हो उपराम ।।४।।
यह तन थाल नयनकी बाती, तार सदा उजराय।
तुकड्यादास दरसका भूखा, यही पद हरदम पाय ।।५।।