जय जय सद्गुरू दीनदयाल ! भ्रम के जाल कटानेवाले
(तर्ज : हरिका नाम सुमर तर... )
जय जय सद्गुरू दीनदयाल ! भ्रम के जाल कटानेवाले ! ।।टेक।।
तुम्हारा ब्रम्हभुवन रहिवास, जहाँपर नहि दुनिया का भास ।
पहुँचे तीन ताल में खास, निर्भय पद कों पानेवाले! ।।१।।
जागृति स्व्रप्त सुषुप्ती-दूर, रहते तुर्या के तट चूर ।
साक्षी सदा अचल भरपूर, माया-नूर हटानेवाले! ।।२।।
खेतनरूप तुम्हारो अंग, चढती सदा ग्यान की भंग ।
तोडे जमराजा के तंग, पूरे रंग रँगानेवाले ! ।।३।।
चौदा भुवन तुम्हारो नाम, ध्वजा है अटल खड़ी चहूँ धाम ।
देते भक्तन को आराम, बोध के बीज उठानेवाले ! ।।४।।
तुकड्यादास चरण में लीन, वृत्ती राखो जी ! तल्लीन ।
राखो सदा चरण लौलीन, अक्षयबोध पटानेवाले ! ।।५।।