जय ओमकारम्, अखिलाधारम् !
ॐकारस्तोत्र
(तर्ज: भज गोविंद भज गोविंद...)
जय ओमकारम्, अखिलाधारम् ! निर्गुणरुपम् वेद - उदारम् !
नत्वमेव अधिकम् नत्वमेव अधिकम्, पूरण ब्रह्म सदा सुखकारम! ।।१।।
रेवातट करि बास अखंडम्, बन-विकसित नवरुप प्रचंडम् !
सुर-नर-मुनि तप करत उदंडम् कष्ट हरत, भवभय-दुःख हारम्! ।।२।।
नाना पुष्प अलंकृत कोषम्, तेज प्रफुल्ल अनल निल रोषम् ।
गर्जत भ्रमर परीमल-तोषम् भं- भं- भ ध्वनि करत विहारम् ।।३।।
त्रिकुट शिखर स्थल त्रैविध रम्यम्, कुंड प्रचंड मनोमय गम्यम् ।
ब्रह्मा, रूद्र, विष्णु अति साम्यम्, महिमा बर्णि न जात अपारम् ।।४।।
गुंफित गुंफ, भौंर अति लाटम्, घटत-बढतजल-बूँद सुसाटम् ।
गावत भक्त स्तोत्र बहु थाटम्, तन्मयवृत्ति डुले स्थल -भारम् ।।५।।
शंख, मृदंग-बजत घडियालम्, नाना भेर, नगारे, झालम् ।
विप्र सदा जपि शिवहर मालम्, शिवरुप देख चढ़े अति तारम् ।।६।।
ज्योतिर्लिंग सुशोभित रंगम, रेवा-जल करि भौंर सुसंगम् ।
झगमग ज्योत जलत शुभ अंगम्, जयशिव, जयशिव उठत उच्चारम् ।।७।।
त्रैकाले पूजा-विधि, ध्यानम्, पंचामृतयुतत होवत स्नानम् ।
राजधिराज करे बह दानम्, शोभत जहँ तिहूँ लोक मुरारम् ।।८।।
वदन प्रसन्न सुशोभित रंगम्, चर्चित भस्म सदाशिव्-अंगम् ।
वक्षस्थल मुँडमाल निजांगम, लल्लाटे शशितेज - उजारम् ।।९।।
कंठ भुजंग जहर धरि नीलम, सीस जटा गंगा-जल भालम् ।
हाथ कमंडल, डमरू, त्रिशूलम्, राम रटे नितनेम उच्चारम ।।१०।।
व्याघ्रांबर-आसन मृदु केशम, करत तपस्या, अवधुत भेषम् ।
नमति नमति सब ईश-सुरेशम्, नारद तुम्बर गात बिहारम् ।।११।।
पीवत भंग सदा अडभंगम्, रूप दिगंबर रहत निसंगम् ।
नंदी गण सब साथ सुसंगमू, तुकड्यादास नमत निर्धारम् ।।१२।।