जय गुरुनाथा ! तू जगत्राता
गुरु-स्तुती
(तर्ज- अपने आतम के चिंतन में...)
जय गुरुनाथा ! तू जगत्राता, शरणागत हम आन पड़े ।
धन्य तुम्हारी माया स्वामी ! दर्शहिसे दिल ग्यान बढ़े ।।टेक।।
तुमही हो अवतार प्रभूके, भक्तनके हितकार अडे ।
जो तोहे गावे सो तर जावे, नहीं गाबे भवपूर चढे ।।
तुमबिन नाही दैवत मेरो, हाथ जोड हम अर्ज खडे ।
कृपा करो गुरुनाथ ! जिहीसे, भवसागर यह टूट पडें ।।१।।
कौन बखाने महिमा तुम्हरी, मुक्ति तुम्हारे द्वार खड़ी ।
रिद्धी-सिद्धी सेवा करती, सब दुनियामें नाम- बढ़ीं ।
चार बेद अरु षड़शास्तर ये, गाते महिमा, घडीं-घडी ।
पुराण - पोथी भाट तुम्हारे, द्वारपाल सम रहें खड़ी ।।
अगम अगोचर श्रृतियोंके पर, तुमही हो गुरुनाथ ! बडे ।
कृपा करो गुरुनाथ! जिहीसे, भवसागर यह टूट पड़े ।।२।।
अनुभव -बीरा ! तू रणधीरा, काम -क्रोध नहीं पास रहें ।
मद-मत्सरका कहाँ गुजारा ? कालसे काल भी भाग गये ।
कभू न मरते, कभू न जीते, सदा बने हो रंग नयें ।
क्या गाऊँ मैं सुस्त तुम्हारी ? रूप दिगम्बर सदा रहें ।
कोउ न जाने लिला तुम्हारी, गूँगा मूखसे बेद, पढे ।
कृपा करो गुरुनाथ ! जिहीसे, भवसागर यह टूट पड़े ।।३।।
दुबिधा तोड जगतकी सारी, अहं ब्रह्म में जाय मिले ।
दया, क्षमा अरू शांति, तुम्हारे, सदा पाँवमें आय डूले ।।
त्वमेव माता, स्फुर्ति -विधाता ! सहजशब्द-उपदेश फले ।
लहर-बहरसे कृपा मिले, उसके समझो कि भाग खुले ।।
सहजासनमें योग सिधारे, योगीसेधी योग लडे ।
कृपा करो गुरुनाथ! जिहीसे, भवसागर यह टूट पढ़े ।।४।।
लोग डटे सेवामें, फल अपना वे पाय रहे ।
जो कोई तेरो रूप न जाने, वह भवसागर डूब गये ।।
सदा दयालू, तू प्रतिपालू, इसही कारण रूप लिये ।
भूले जो संसार-चक्रमें, कर उपदेशा तार दिये ।।
तुकड्यादास यही बर माँगे, नाम तुम्हारों जींह लड़े ।
कृपा करो गुरुनाथ ! जिहीसे, भवसागर यह टूट पड़े ।।५।।