सुहागन तीरथ करने चली
(तर्ज-बन चले राम )
सुहागन तीरथ करने चली ॥ टेक ।।
अंग भरे जेवर सजवाकर, कंधी तेलसे मली ।।१।।
पतिके सिरपर बोझा देकर, हाथ हिलावत खुली ।।२।।
ऊँट सवारो, घोडा बाँधो, आप रहत है खुली ॥३।।
रोठ बुलाओ, लड़ बनाओ, आप न थोडी हिली ।।४।
पती बिचारा बेल बना है, आप बनी है बली ॥५॥
सन्त-देवता से नहीं नाता, घुमे दुकान और गली।।६॥
क्या होगा तीरथ करनेसे ? पती चढ़ाया सुली ॥७।।
तुकड्यादास कहे ए भाई! काहेको ऐसी पली! ।।८।।