अरे सोचके चल भाई !

               (तर्ज: अब जाग उठो भाई...)
अरे सोचके चल भाई ! फिर याद न कर बचपन ।।टेक।।
खेलन में रहता था, जब थी न फिकर कोई ।
हर काम में अडता था,माँ-बाप ने समझाई ।।
अब तुझको सम्हलना है,फिर याद न कर बचपन ।।१।
संसार की आँधी में, कोई रहने नहीं पाता ।
जो भूल करे इसमें, तन-मनसे जल जाता ।।
यह ग्यान समझना है, फिर याद न  कर  बचपन ।।२।।
दनियाही हमारी है, हम दुनिया के बन्दे ।
सब मिलकर जीयेंगे, ना करे बुरे धन्धे ।।
कहे तुकड्या तराना है, फिर याद न कर बचपन ।।३॥