सुनलो देहातो के भाई! अपना ग्रामराज्य बनवालो।
(तर्ज: अब आया है सबराज.... )
सुनलो देहातो के भाई! अपना ग्रामराज्य बनवालो।
कोई मत पूछो शहरोंको,अपना ऐसा कार्य उठालो ।।टेक ।।
चर-संडास, खादके गड्डे, निज हाथोसे कर डालो।
अपनी सडके आप बनाकर चौकमें दिये जलालो ।।१॥
गेहूँ-जवाँर-तुवर और चाँवल, सभी नाज उपजालो।
गाँव-कपास को वही धुनाकर,वही खद्दर बुनवालो।। २ ॥
ग्राम -तेलघानी के जरिये सुन्दर तेल निकालो।
मिर्च-बैगन और साग, टमाटर, घर-घरमें उपजालों ।।३ ।।
सहकारी -भण्डार खुला कर , उसमें माल रखालो।
जो जिसको चाहिये वह देदो,मालसे माल उठालो ।।४।।
ग्रामहीमें कुछ पंच बनाकर, वहिं झगडा निबटालो ।
अपने जीवनका शिक्षण भी, बचपनसे दे डालो ।।५ ॥
कसे उसीकी जमीन बाबा ! करे उसीका धंदा।
तुकड्यादास कहे, सुख पालो, भजलो राम गोपालो ॥६॥