हरिने कुटिया बनाई बनमें
(तर्ज: बन चले राम रघुराई.... )
हरिने कुटिया बनाई, बनमें ।।टेक।।
जंगल के थे झाड-झड़ूले, लाये तोड जमाई ।
फूल-फलोंकी बेलें सुन्दर, सुन्दर मंच सजाई ।।१।।
आदिवासिकी बनी है कुटिया,जामे आनंद भाये ।
छुआछूत को छोडा सबने, विश्व- कुट्म्ब बनाये ।।२।।
लैन - लैनमें छोटे बालक, सजधजसे बिठवाये ।
सब बस्तीके जवान बूढ़े, हरिगुण गाने आये ।।३।।
सब मिलकर गावको सुधारे,भेद न दिखता कोई ।
तुकड्यादास कहे वहि तीरथ,कहीं न घुमो भाई !।।४।।