अजब तमाशा देखा शहरमें

                               (तर्ज-छंद)
अजब तमाशा देखा  शहरमें, बैमानीसे   चलता   है ।
देखके पानी भरा नजरमें, अभीभी जिया मचलता है।।टेक॥
शहरीयोंके बच्चे जमकर देहातीको छेडते है ।
दीन-दहाडे लूटके लकडी उसकी धोती  छीनते   है ।।
कहीं तो पगला बनाके उसको जेबभी उसके ढूंढते है ।
बडे लोग बेशरमी धरके, देख-देख मूंह  मुडते  है ।। 
किसान रोता- बाबूसाब ! यह देखो बच्चे छेडते है ।
वह बईमान जरा नहीं रोके, और ये गुंडे भिडते है।।
बाहवा रे यह अजब जमाना ! कैसी मिले सफलता है।
                   देखके पाणी भरा 0।।१।।
कपास आता बजारमें जब, अंधाधुंद लुटा जावे ।
रोता है बस किसान परभी, दया न थोडीसी आवे ।।
जो आता वह हाथ मार दे,चुंगडी भर लेता अपनी ।
दलालकी तो कमी नही है,किसान को देता कफनी ।।
भाव टालकर कपास मांगे,नाजकी भी तो गत ऐसी ।
कमानेवाले मरे कष्टसे, मजा   करे   शहरोवासी ।।
मनमाने ले  दाम उन्होसे, बेपारी   को   दर्द   नहीं ।
मरे नामसे देहाती यह अजब बात हो रही  सही ।।
कैसी तरक्की हो भारत की ? मुझको तो डर लगता है
                      देखके पाणी भरा 0॥२॥
देहातीका लड़का पढने जब  शहरोमें   आता   है ।
बाबूसाबका लड़का उसको बंदर जैसे नचाता है ।।
देखो तमाशा, चलो सिनेमा,होटलमें ले मरता है ।
दोनो - चारो गुंडे लेकर, पैसे खाली   करता   है ।।
नहीं माने तो मारो-पीटो,उसका पालक यहाँ कहाँ ?
निचे मुंडी डालके बेटा सहता है दुःख बडा यहाँ ।।
दुरुस्त होनेके बदले वह बनता है डाकू   संगसे ।
वह भी होता शहरका साधी,फिर देहात लुटे दिलसे।।
इसीलिये कहता हूँ तुमको, देहातोंपर   निगा  रखो ।
नहीं तों उनकी आह लगेगी, भूलो ना, यह पास रखो।।
भारतकी तब छबी बनेगी, सुखसे  जब   देहात  हँसे ।
नही तों सारे शहर   उजाडो, देहाती   देहात   बसे ।।
तुकड्यादास कहे,नहीं सहता,जब देखूं दिल जलता है
                        देखके पाणी भरा0 ।।३।।