जिया भरके भजन नही कारता !
(तर्ज : तेरा जादू न चलेगा... )
जिया भरके भजन नहिं करता !
दिन रात खुशी में ही मरता ।।टेक।।
जीवनभर बकवास किया, पण्डित कहलाने को ।
पर नहिं कुछ भी उपकार किया,विद्या सहलाने को।
क्यों मतलब से घर है भरता, जिया भरके 0।।१।।
लाभ कहाँ ? जब सत्य नहीं,सत्य-विजय कहते है।
झूठ समान न पाप कहीं, सन्त बचन कहते है ।
क्यों अपमान को मन में डरता,जिया भरके 0।।२।।
अनुभव -सागर यह बोला, चित्त-चरित्र बनाले ।
कभू न किसका कर बूरा, सबसे हाथ मिला ले ।
तुकड्या कहे वह पल में तरता,जिया भरके 0।।३।।