ईमान तो धूलिमें मिलाया
(तर्ज: देखे तिरे संसारकी हालत... )
ईमान तो धूलिमें मिलाया ,हो करके बैमान ।
कहता क्यों अब तो इन्सान? ।।टेक।।
पाप करनेको मरमरता है, पापी कहने क्यों डरता है?
विकारवश होकर फिरता है,बिचारकी गप्पें करता है।
सजा पड़ी जब आकर तनपे,फेर भजे भगवान ।। कहता 0॥१॥
घूंसखोरीसे धन भरता है,चींटि पालकर पुन करता है।
व्यभिचारोंसे घर भरता है; ग्यानी कहने मरमरता है ।
पोल छिपेगी कहो कहाँतक,रह सकता मेहमान ? ।। कहता 0।।२।।
आजही अपनी नेकी सुधरले,बचे समय का सार्थक करले ।
सच्चा बोल जबाँसे अपनी,चरित्र-नीतीको सिर धरले।
तुकड्यादास कहे रे बन्दे ! नहिं करता प्रभुगान ।।कहता 0।।३।।