तू अखिल ब्रम्ह हम तेरे
(तर्ज: तू मेरा चाँद में तेरी चांदनी... )
तू अखिल ब्रह्म,हम तेरे अंश है ।
तू अमर पुरुष, हम तेरे वंश है ।।
नहिं एक समझना कोई, सादगी खोई ।।टेक।।
एकमें रहते एकहि कहते,अनुभवकीं यह चीज ।
प्रेम की बीना तार चढाये, ब्रहाग्यान के गीत ।।१।।
सुर नर मुनि इसही साधन में, ढूँढत है दिनरात ।
तुकड्यादास कहे कोई बिरला,अपनाता यह बात।।२।।