जात बताकर शंख बजाता
(तर्ज: देख तेरे संसार की हालत...)
जात बताकर शंख बजाता,जरा न करता काम ।
अंधा तू और तेरा - नाम ।।टेक।।
कहता है में ब्राह्मण जाती ।
चमार बनकर सीता जूती ।।
कभी न करता पूजापाती ।
गैया भी तो घरघर रोती ।।
खरीदता है हिरा जवाहर, पासमें नहीं छदाम ।
अंधा तू और तेरा नाम 0 ।।१।।
कहता - मैं क्षत्रिका बेटा ।
मुर्गी बेचने लगा झपाटा ।।
जरा न सिर छातीमें ताठा ।
चोर-डाकुमें दिखता बैठा ।।
कौन करे रक्षण गरिबोंका, क्षत्रि हुआ मेहमान ।
अंधा तू और तेरा नाम 0 ।।२॥
मे हूँ वैश्य जात बेपारी ।
आज बना देवलमें पुजारी ।।
अक्ल गई मेरी सब मारी ।
माँगु दक्षणा गई हुशारी ।।
धंधा करता जब तू जुदा,जात हो क्यों बदनाम ?
अंधा तू और तेरा नाम 0 ।।३।।
शुद्रजात कहता फिरता है ।
नेक काम जगमें करता है ।।
रहन-सहन सुधरे रहता है ।
फिरभी समाधान ले फिरता है ।।
वाह वाह रे यह रीत जात की,अलग नाम और काम ।
अंधा तू और तेरा नाम 0।।४।।
जात और धंदा अलग बताता ।
फिरभी तू अभिमान मिराता ।।
छोड़दे अपना झूठा नाता ।
जो करता वह क्यों नहिं सुनता ?
तुकड्यादास कहे, भारत को देता धोखा दान ।
अंधा तू और तेरा नाम 0॥५॥