अब आई दावाली घरघरमें
(तर्ज: ऐ नाग कहीं जा...)
अब आई दिवाली घरघरमें,
मेरा काम न उरका है ।।टेक।।
क्या-क्या करूं मैं दो हाथोसे ? क्या होता बातोंसे ?
मालिक का घर रंगू कि अपना? मार पडे जूतोंसे ।
मेरा मालिक उलटे सिरका है ।। मेरा काम 0।।१।।
सबने भूमीदान दिया पर, इसका दिल नहीं होता ।
धनका दान करे फिर कैसे? यही स्वारथको रोता ।
नहीं मानेगा सिर फिरका है ।। मेरा काम 0।।२।।
अपने घरमें माल चखे वह, नौकरसे ना पूंछेगा ।
जरी भरी के कपडे पहने ,नोकर का नहीं सोचेगा ।
मेरा दिल तो दियेसे भरका है ।। मेरा काम 0।।३।।
होगी दिवाली किसके घर, पर -मेरा घर है गन्दा।
तुकड्यादास कहे, बस्तीका -मालधनी तों अन्धा।
वही नहीं माने, क्या गिरका है ।। मेरा काम 0।।४॥