कहाँ दिवाली रही देशमे ?

       (तर्ज: हवाल दिल होगया जमाना...)
कहाँ दिवाली रही देशमें ? पानीसे अंगार   लगी ।
खाक हुई जीवनी प्रांतमें,लाखोंकी सारी जिंदगी।।टेक॥
धुमस रहा है कुटिल काल यह नहीं चैनकी है बन्सी ।
घरघरमें फुट, गाँवमे झगडे, कहो दिवाली हो कैसी ? 
एक मजा मारे पैसोपर, दुजा भिखारी  घर   रोता ।
करे कष्ट पर पेट न भरता,दर-दरपर नारा कहता ।।
सही दिवाली लानी हो तो, भूमिदान-धनदान करो ।
आपसभमें ही सम्हल-सम्हल के गाँवको आलीशान करो ।।
सब खावे तब में खाऊँगा इस निश्चयपे ध्यान करो ।
गाँवमे सब आनंद रहे, तब दिवालीका   मान  करो ।।
तुकड्यादास कहे कहीं मानो,मानवता अभि नहीं जगी
करो सफल यह सब मिलकर तुम, तब होगी पूरी बदगी ।।१।।