दीपावली के शुभ अवसर पर

           (तर्ज : बेद्शास्र तुम पढे हो पर...)
दीपावली के शुभ अवसर पर,प्रेमका दिया जलायें हम।
सब मिल शान बढायें अपनी, घरघर हृदय फुलायें हम ।।टेक।।
अपना गाँवही अपना घर है,सब मिल साफ करायें हम
कमी रही पुरवाये हम और नहीं  रहे   मँगवायें    हम ।।
भूखा प्यासा कोई न होगा, तन-मन-धन सुधरायें हम।
गरीब-अमिरका भेद मिटाकर,निर्मल प्रेम बहायें हम ।।
जातपात का द्रेष हटाकर, मानव-राज्य बनायें हम ।
आतिषबाजी कौन उडाता? खुशीके बाज बजायें हम।।
गली -गलीमें गौएँ नाचे, सिरपर मयुर सजायें हम ।
नौजवान और बालक बूढ़े गोधनके गीत गाये हम ।।
सुन्दर बीन, बाँसुरी, पुंगी भरभर राग सुनाये हम ।
निर्मल नदियाँ, उज्वल कूएँ, सुन्दर तालपे न्हाये हम।। १॥
फटा-टुटा कोई न मिलेगा, अजब वस्र   पहनायें हम ।
घर-घर तिलक लगाये बहनें,विश्व -कुटुंब बनायें हम।।
हम ही धोबी, हम ही भंगी, हमेंहि चमार बनायें हम । 
जिस जिसकी जरुरत है हमको, वह सारे बन जायें हम ।।
हम किसान और बागवान, पंडीत - पुजारी छाये हम।
धनवाले साहुकार हम हैं, सारा गांव सजाये हम ।।
हम बुनकर, बेलदार, मिस्त्री, हम गायक, बजबवेये हम।
हमी श्रमिक, सुखपूर्ण हमी, सब देशकेहि खिवैये हम।।
तुकड्यादास कहे यह होगी, दीपावली तब धायें हम।
बिना इसीके होली हैं यह, गर्ज-गर्ज कर गायें हम ।।२॥