दिवाने नैन खुले करले, नजरभर साँईको धरले
भजन २२
(तर्ज : जपका अजब तडाका बे... )
दिवाने नैन खुले करले, नजरभर साँईको धरले ।। टेक ।।
बहुत जनम से विषय चले है, अब इनसे डरले।
मातपिता का अंत न लागे, माया ये हरले ।।१।।
तनमंदिर में कौन खड़ा हे, उसपर जा मरले।
सद्गुरू साक्षी रखकर प्यारे, सबको वश करले ।।२।।
रक्त शुभ्र और नीलपे बिंदू, देख उसे बरले।
कंठ ओठबिन जाप चला है, भावन से स्मरले
।।३।।
कहता तुकड्याभाट ख्याल दे, भवसागर तरले |
आडकुजी को भजके प्यारे, जन्म-मरण हरले ।।४।।