अपनी अपनी सब कोइ कहते
(तर्ज: (छंद) हरिका नाम सुमर न प्यारे...)
अपनी अपनी सब कोइ कहते जो ईश्वरको मंजूर नहीं।
अपनी तानसे कुछ नहिं बनता,जिसमें साक्ष हुजूर नहीं ।।टेक।।
यह बीमारी नहिं रोगोंकी, है दुनियाके भोगोंकी ।
संसारमें हो सुखशांति तब शाति होय रे मनकी ।।
क्योंकर यार सताते हो, कुछ करो देशका काम अभी ।
वक्त चला जायगा निकलकर,होंगे फिर बेकाम सभी ।।१।।
जिंदे गरचे रहना हो तो, भारत को सुखशान्त करो ।
करो, नहीं तो मरो, परंतु ऋषियोंके दिल लब्ज धरो ।। कई मोतिसम जान गये, और माताओंसे ब्रीद गये ।
कई बच्चोके प्राण गये, और शूरोंके अवसान गये ।। २॥
तुम हो किसके लिये !अगरचे,दुनिया यह कंगाल बने ।
क्या कहते होंगे वे बुजरुग, लडलडके बेफाम बने ।।
अगरचे तुमको देशको अपने, आजादीमें रखना है ।
डरो न किसको मरो जंगमें, यह शांति-पथ अपना है ।। ३।।
मुझको अगर तरीका पूछो, मैं मीठे लब्ज सुनाता हूँ ।
जिससे मुझको खुशी रहे,और तुमरा भला कराता हूँ ।
घरघरमें चरखे चलवावो, करो कवायद वीर सभी ।
बूढ़े, बालक, माता, भगिनी ना भूलो प्रार्थना कभी ।।४।।
जात-पाँत को दूर हटावो, हम इन्सान यही बोलो ।
आजतलक के कपट किया था,अब अपना पडदा खोलो ।।
गाँवको अपने स्वर्ग बनाओ,ना किसको दुख -दर्द रहे ।
राष्ट्र के रंगमें रंगो सभी जन,सत्यहिका व्यवहार रहे।।
प्यारा वह गुरुदेव हमारा, सेवामण्डलू व्याप्त करे ।
घरघर आजादी फैलाये, रामराज्यको प्राप्त करे ।।
कहता तुकड्यादास, राष्ट्रको जान-मान अर्पण करदो
बुरा न किसका चहे भागर अन्यायी को बाजू करदो ।।६।।